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शुक्रवार, 9 मई 2014

Naari Roop नारी रूप


नारी तू है मूरत एक
लेकिन तेरे रूप अनेक ......

जन्म लिया जब बेटी बनकर
किलकारी से किया घर को गुंजन
मधुर पाजेब कि झंकार से
पुरे घर में करती तू झम-झम
बनी किसी कि जब तू दुल्हन
रोशन करती उसका घर-आँगन
घर में आई धर लक्ष्मी रूप
पवित्रता तेरी माँ तुलसी रूप

नारी तू है मूरत एक
लेकिन तेरे रूप अनेक ......

आई जब तू ममत्व धरा पर
अाँचल में अमृत रस भर
ह्रदय में लिए प्रेम अपार
करती तू बच्चों का जीवन साकार
और भी हैं तेरे कितने रूप
तू हरदम सहती छाँव और धूप

मिलता जब भी स्नेह तुम्हें
महकती बन तू कोमल फूल 
नजर पड़े जो अस्मत पर तेरे
तू बन जाती कठोर शूल 

नारी तू है मूरत एक
लेकिन तेरे रूप अनेक ....








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