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रविवार, 17 नवंबर 2013

Naari Bhavna नारी भावना...




भावना हवा बनकर उड़ना चाहती थी
पर घास बनकर जमीं से ही सटकर रह गयी .....
भावना पंछियों कि तरह उड़ना चाहती थी
पर पंख पसारे वह मोरनी कि तरह नाचती रह गयी....
भावना करुणा से पिघलती गयी
भावना भावनाओं में बहकती गयी......
भावनाओं के इस अथाह सागर में 
हर किसी ने तृप्ति लगायी
हर किसी ने मलिन तन-मन लिए
भावना के प्रेम सागर में डुबकी लगायी......
किसी कि मलिन नजरे .........
किसी कि मलिन आत्मा ......
सबने भावना को छला 
सबसे भावना कि लहरें टकराई .......
तो क्या भावना मलिन हुई ?????
और हुई तो क्यों???
उसने तो किसी को नहीं छला ,,,,
उसने तो किसी को नहीं ठगा ,,,,
और ग़र समझते हो वो मलिन नहीं ,,,,
तो क्या कभी
उस भावना के गहरे सागर में
डूबकर निकालोगे उसके निश्छल ,
निष्कपट प्यार का वो कीमती मोती ????

नारी भावना. कोमल हृदयवाली.. जिसे ठगनेवालों कि कमी नहीं..कभी प्रेम का ढोंग कर उन्हें झलते है , कभी एसिड से उनकी जिंदगी को झुलसा देते है..तो कभी राह चलते उनके साथ बत्तमीजियां कर उनकी भावना को अक्सर ठेस पहुंचाते है..बस इसी पर मेरी रचना है..
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