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रविवार, 15 सितंबर 2013

Adhure Chaand ki puri Raat अधूरे चाँद की पूरी रात ...




करवट - करवट बदलती
 ..... सिलवट - सिलवट चादरों की .....
चुप सी बात , ढ़ेर सारे जज्बात
.......दो अजनबी एक रात .....
.......मुस्कानों की बरसात.....
कभी दाएँ से- कभी बाएँ से
भीनी खुशबू, मोगरे की वास
......अँधेरी रात ......
 ....माथे का अधुरा चमकता चाँद .....
नींद को तोड़ती 
......कंगन की खनखनाहट .....
पर खामोश जुबान
.....मुस्कुराहट बार - बार कई बार ....
अब ख़त्म हो गई
अधूरे चाँद की पूरी रात
.......लो भोर जो हो गई .....
सुन्दर बीती रात
अनछुए पहलू से
पूर्ण निष्ठा और विश्वास 
दो सूत्र मिले 
......महकाने को घर - संसार .....
उस अधूरे चाँद की पूरी रात में......
इस सूत्र के साथ हो गई नई शुरुवात 
 ......नए रिश्तों के सुन्दर सफ़र की.....



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