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सोमवार, 30 सितंबर 2013

Khyalo ke Badal खयालों के बादल





खयालों के बादल
उमड़ - घुमड़ नाचते है मेरे आसपास
वो खयालों के बादल ........
बरसने से पहले जैसे बदलते है रंग बादल
आकाश में विचरते है यहाँ से वहाँ .......
फिर एक रंग और तेज रिमझिम फुहार
ऐसे ही है मेरे खयालों के बादल भी ........
विचरते है सोच की आकाश गंगा में
और जब भर आता है उनका मन .........
फिर बरस पड़ते है मेरे खयालों के बादल भी
कोरे कागज पर..........
भिगो देते है मेरे मन को अपनी भावना से ,,,,,,
इस भीगे मन से मै भी सींचने लगती हूँ
एक नई सृजन की फसल...



रविवार, 15 सितंबर 2013

Adhure Chaand ki puri Raat अधूरे चाँद की पूरी रात ...




करवट - करवट बदलती
 ..... सिलवट - सिलवट चादरों की .....
चुप सी बात , ढ़ेर सारे जज्बात
.......दो अजनबी एक रात .....
.......मुस्कानों की बरसात.....
कभी दाएँ से- कभी बाएँ से
भीनी खुशबू, मोगरे की वास
......अँधेरी रात ......
 ....माथे का अधुरा चमकता चाँद .....
नींद को तोड़ती 
......कंगन की खनखनाहट .....
पर खामोश जुबान
.....मुस्कुराहट बार - बार कई बार ....
अब ख़त्म हो गई
अधूरे चाँद की पूरी रात
.......लो भोर जो हो गई .....
सुन्दर बीती रात
अनछुए पहलू से
पूर्ण निष्ठा और विश्वास 
दो सूत्र मिले 
......महकाने को घर - संसार .....
उस अधूरे चाँद की पूरी रात में......
इस सूत्र के साथ हो गई नई शुरुवात 
 ......नए रिश्तों के सुन्दर सफ़र की.....



शनिवार, 14 सितंबर 2013

Hakikat hai ye koi kahani nahi. हकीकत है ये-- कोई कहानी नहीं.



हकीकत है ये -- कोई कहानी नहीं....
(नायिका ---सौम्या... नायक ---- प्रथमेश.. ----समीर -----निहालिका..... फिर से एक कोशिश कि है कहानी लिखने कि..कैसी है बताइये जरूर...:-)...)



एक सुन्दर सी पर थोड़ी चुप सी रहनेवाली सौम्या.....और प्रथमेश  जिद्दी, नटखट शरारती था...फिर भी ये दोनों दोस्त बन गए.....साथ ही पढ़ना - लिखना . स्कूल जाना - आना....सारा वक्त साथ रहते थे......अगर भगवान ने रात ना बनाई होती तो उस वक्त भी ये साथ रहते....कभी खुद के कामो में व्यस्त कभी एक दुसरे कि पढाई में मदद करते थे...
स्कूल के बाद उन दोनों ने एक ही कॉलेज में दाखिला लिया. वहां भी इन दोनों की दोस्ती ऐसी ही थी....कॉलेज के सभी छात्रों को लगता था की वे एक दुसरे को प्यार करते है  ...पर वे हमेशा इस बात को नकार देते है..
कॉलेज का ही एक छात्र जो सौम्या को पसंद करने लगा था....और जब उसे यकीन हो गया की सौम्या और प्रथमेश सिर्फ दोस्त है ,,,तो अपने दिल की बात वो अपने दोस्तों को भी खुलेआम  बताने लगा....
तुमसे मिलने के बाद ये अहसास आया 
कितने अकेले थे हम ये ख्याल आया 
अब जिंदगी तेरे साये में यू ही बीत जाये
 बरसो की तन्हाई का अब अंत हो जाए ....
समीर ने अपने प्यार का इजहार सौम्या से भी कर दिया....
पर सौम्या तो इन सबसे बहुत डरती थी इनसे वो बहुत ही उदास हो गयी थी वो प्रथमेश के अलावा और किसी पर भी भरोसा नहीं करती थी ...उसने प्रथमेश को समीर की इस हरकत के बारे में बता दिया...
           प्रथमेश ने सौम्या की उदासी दूर करने के लिए.उसे इन सब से छुटकारा दिलाने के लिए कॉलेज के ग्राउंड में सौम्या का हाथ थाम सबके सामने कह दिया की ..वो सौम्या से प्यार करता है, सौम्या और वो साथ साथ है..   सौम्या को इस बात से बहुत ख़ुशी हुई मानों जैसे प्रथमेश ने उसके दिल की बात कह दी हो...और वो उस दिन से कुछ बदल सी गयी थी..
 कभी सोचा ना था की यूँ  खो जाएगी जिंदगी 
किसी के इंतजार में , कभी सोचा न था की यूँ
 बदल जाएगी जिंदगी किसी के प्यार में ...
सौम्या प्रथमेश को किसी और लड़की के साथ बात करते हुवे देख नहीं सकती थी....हर वक्त उसके साथ रहने की कोशिश करती थी...प्रथमेश को बात बात पर टोकती हर वक्त किसी न किसी बात को लेकर उससे शिकायते शुरू कर देती...
              नजदीकिया इतनी न बढाओ 
              की हर बात अब शिकायत सी लगे ..
प्रथमेश सौम्या की इस हरकत से नाराज सा खिझा- खिझा सा रहने लगा....कॉलेज ख़त्म हुआ ..और प्रथमेश आगे की पढाई के लिए अमेरिका चला गया.  उसे वहां अच्छी नौकरी मिल गयी....और वो अमेरिका में ही रहने लगा...
     सौम्या भी नौकरी करने लगी थी..प्रथमेश को बहुत याद करती थी ... प्रथमेश की जुदाई को सह नहीं पाई हर किसी में वो प्रथमेश को तलाशती..
                 गुलाब पाने की चाहत में 
                 आँख बंद कर चल दिए 
                और न जाने कितने काँटों से चोट खायी ..
वो शांत सी चुप सी सौम्या जो प्रथमेश के सिवाय किसी और पर भरोसा  भी नहीं करती थी वो आज हर किसी के साथ घुमती दिखाई देती है ..बस मरना ही बाकी रह गया था बाकि सारी हदे पार कर दी थी सौम्या ने.....
               जिंदगी में उसकी तलाश आखिर कब तक 
जो नहीं मिल सकता उसका इंतजार आखिर कब तक ....
समीर ने कई बार सौम्या से बात करनी चाही पर समीर को देखते ही सौम्या बहुत ही गुस्सा हो जाती थी...सौम्या की इस हरकत से समीर लाचार हो गया था...समीर सौम्या पर नजर रखने लगा   ...एक गुमनाम दोस्त बनकर उसने सौम्या की मदद करना शुरू कर दिया.....
जब भी वो सौम्या की कोई मदद करता था,,,,फिर चुपके से एक लेटर सौम्या तक पहुंचा देता... 
तुम्हारा दोस्त
 तुम्हारे साथ....:-)

सौम्या उन सारे खतों को संभाल कर रखती थी....कई बार उसने ये जानने की कोशिश की  ,,, की  ये कौन है..पर उसकी कोशिश बेकार हो जाती...
सौम्या जिस ऑफिस में काम करती थी उसी ऑफिस में समीर की बहन भी थी...निहालिका.....
सौम्या और निहालिका दोस्त थे..पर एक दुसरे की पिछली जिंदगी से अंजान....

एक दिन अपने जन्मदिन पर निहालिका सौम्या को अपने घर ले गई ...
उसने अपने परिवार से मिले सभी गिफ्ट सौम्या को दिखाए...  उसमे एक ग्रीटिंग कार्ड था....   सौम्या को वह लिखावट जानी- पहचानी लगी उसने झट से अपने पर्स में से वो लेटर निकाले...ग्रीटिंग कार्ड की लिखावट और ख़त की लिखावट एक जैसी थी....सौम्या ने उस लेटर को अपने पर्स में रख दिया.....और ग्रीटिंग कार्ड की तारीफ करते हुवे निहालिका से पूछा की ये कार्ड उसे किसने दिए है...निहालिका ने कहा : समीर भैया ने..बस अपने समीर भैया के बारे में वो बताने लगी....इससे सौम्या को समीर के बारे में पता चला की वो क्या काम करता है...उसका ऑफिस कहा है....और कई बाते.....
                  एक दिन शाम के वक्त सौम्या सड़क पार कर रही थी अचानक एक तेज रफ़्तार से ट्रक सौम्या की तरफ बढ़ रहा था....सौम्या घबरा गयी जैसे उसके सुनने - समझने की छमता ही खो गयी हो. और बिच सड़क पर ही स्तब्ध खड़ी हो गयी....ट्रक उसके नजदीक बढता ही जा रहा था....समीर ने देखा और उसे सड़क के किनारे खिंच लाया पास के बेंच पर बैठा दिया....इससे पहले की सौम्या को होश आए और समीर को देखकर वो गुस्सा हो जाये समीर ने हमेशा की तरह एक लेटर सौम्या के पर्स पर रखकर वहां से चला गया....
तुम्हारा दोस्त
 तुम्हारे साथ....:-)
:-)

कुछ समय बाद जब सौम्या को होश आया तो उसने वो लेटर देखा ...
इस बार सौम्या ने उस लेटर के निचे....
तुम्हारा दोस्त
 तुम्हारे साथ....:-)

:-)

thanks sameer
today muskan park....
6.30 pm :-)

इसे समीर के घर भेज दिया...
:-)

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

Ishq इश्क


सबसे खुबसूरत दुआ है इश्क 
और सबसे बड़ी सजा भी इश्क ......
अगर जो पा लिया हो सच्चा इश्क 
तो और कुछ पाने की ख्वाहिश ही कहाँ....
जो मिले अगर छल इस इश्क में तो 
और कुछ खोने की गुंजाईश ही कहाँ ......


रविवार, 1 सितंबर 2013

Kankrit ke jangal कंकरीट के जंगल



कभी इन्हीं जगहों पर हुआ करते थे
बड़े- बड़े जड़ -लताओंवाले वृक्ष 
सुगन्धित फूलों के पौधे
हरियाली फैलाती दूर तक बिछी घास 
तरह -तरह के पंछी और उनकी मीठी आवाज.....
अपने अन्दर कई खूबसूरती और
 रहस्य को छुपाये ये जंगल .......
और इसके पास छोटे छोटे 
घरों में रहनेवाले सामान्य लोग
जो सारा दिन काम करने के बाद 
इन वृक्षों के निचे बैठ कुछ पल को 
ठंडी साँस लेते थे.......
परन्तु बदलते परिवेश और आधुनिकता ने चारों ओर
कंकरीट के जंगल बना दिए है
अब तो चारों ओर केवल कंकरीट
 की इमारतों का ही कब्ज़ा है ......
इन इमारतों की खूबसूरती में बिकते लोग
कोई बनाने की चाहत में बिक रहा है
मानवीयता बेच के संवेदनहीन हो रहा है ......
तो कोई खरीदने की चाह में 
खुद को बेंच रहा है.........
और इस खूबसूरती में रहनेवालों की ठाठ ही अलग है
बंद खिड़की और दरवाजों के अन्दर चाहे जो है......
पर बहार निकलते ही ये बन जाते है
बड़े साहब और मेम साहेब
और पहन लेते है आधुनिकता के 
काले कोट बड़े साहेब जी
और डिजाइनर साड़ी में मेम साहेब जी.....
एकदम खानदानी .....
बहुत ही सुन्दर है ये कंकरीट के जंगल....
और इसके लोग....




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