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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

Tere aane se तेरे आने से



तेरे आने से रोशन मेरा जहाँ हो गया
तेरे प्यार से महकता आशियाँ हो गया .....
तेरी आदाएं कोमल तितली सी है
तेरे आने से मेरा जीवन गुलिस्ताँ हो गया....

रंग इतने लाई है तू जीवन में मेरे
की अब हर शमाँ रंगीन हो गया ....
सादगी तेरे व्यवहार की ऐसी मनमोहक है
की मै तो तुझमे ही खो गया .....

यूँ शुभ कदमों से तू मेरे घर आई है
की मेरा घर , अब घर नहीं जन्नत हो गया .....
भोर की पहली किरण के साथ ही 
तेरा मधुर आवाज में कृष्ण को पुकारना
मेरा मंदिर , मंदिर नहीं गोकुलधाम हो गया ......

हे प्रिय, हे गंगा, हे तुलसी, हे लक्ष्मी
और किस - किस नाम से पुकारूँ मै तुझे
तेरी भोली सीरत पर मै तो  फ़ना हो गया...
तेरे आने से रोशन मेरा जहाँ हो गया
तेरे प्यार से महकता आशियाँ हो गया .....

शनिवार, 19 जनवरी 2013

Kasur कसूर



जाओ चले जाओ
अपने सारे ख्वाब भी ले जाओ
वो झूठे वादे भी ले जाओ ......
वो झूठी कस्मे भी ले जाओ
वो तुम्हारा रूठना भी ले जाओ
पर मेरा मनाना मुझे दे जाओ ........
वो प्यारे ख़त जला दो अभी इसी वक्त
पर मेरी यादें , मेरी बाते मुझे लौटा दो
बस चले जाओ दे दो आजादी  .......
इस झूठे प्रेम से इस छल से 
बस इतना बताते जाओ 
की, मेरा कसूर क्या था.....
बीना कसूर जा रहे हो
तो एक सजा भी लेते जाओ .......
मेरी दुआएँ
फिर लौट कर आने की.....

रिश्तों को यूँ ही नहीं बिखरने दूंगी
आज तुम्हारी जिद है तो जाओ .....
एक संकल्प मेरा भी है .....
तुम्हें फिर ले आउंगी ....

शनिवार, 12 जनवरी 2013

Ek jashn aisa bhi एक जश्न ऐसा भी ..



आज मैंने देखा सड़क पर 

एक नन्हा सांवला बच्चा 

प्यारा सा,, खाने की थाली में कुछ ढूंढ़ता हुआ

उस थाली में था भी तो ढ़ेर सारा पकवान .....

वहीँ पास उसकी बहन थी
जो एक सुन्दर से दिए के
साथ खेल रही थी .....
दिए की रोशनी से उसकी आँखे चमचमा रहीं थी
वो छोटी सी झोपड़ी भी दिए के
रोशनी से रोशन हो गयी थी...
वरना दूर सड़क पर की स्ट्रीट लाइट 
का सहारा तो था ही...
बगल में बैठी उसकी माँ 
अपने बच्चों की ख़ुशी से
फूली नहीं समां रही थी...
थोड़ी ही दूर अगले मोड़ पर एक दावत थी..
सेठ जी के  पोते का मुंडन था...
शायद वहां के सेठ-या सेठानी 
इनपर मेहरबान हुए होंगे
तभी तो आज यहाँ भी जश्न का माहौल है...
शायद जब महलों में दिया जलता है
तभी होती है इन झोपड़ियों में रोशनी ....


शनिवार, 5 जनवरी 2013

Galat rasta a short story गलत रास्ता

गलत रास्ता a short story...
मद्धम परीवार में जन्मा नमन, अशोक और सुमन का बेटा है..
छोटा परीवार माता -पिता छोटी बहन सिया और नमन...." हम दो हमारे दो" और "छोटा परीवार सुखी परीवार" वाली स्थिति थी यहाँ...
नमन बी.एस.सी कर रहा था .ज्यादा नहीं पर शुरू से ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाता है..सिया भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो जाती..माता पिता भी खुश थे. बच्चों पर अधिक दबाव नहीं डालते.प्यार से उन्हें समझाते है..
नमन बी.एस.सी द्वितीय वर्ष में आ गया ..अब यहाँ वहां के दोस्तों के साथ उसकी उठक- बैठक कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी..
माता -पिता की हिदायते जैसे अब उसे रोक-टोक लगने लगी ..ज्यादा समय घर के बाहर रहना...बदनसीबी यहाँ हो गयी की उसके , उन दोस्तों में वह ज्यादा पढ़ा था..बाकि सब कम  पढ़े थे.. उसके दोस्त उसकी छोटी -छोटी बात पर तारीफ करने लगे..क्योंकि उनके लिए क.ख ग घ से ज्याद तो पहाड़ जैसा था..
      उनके झांसे में आकर नमन काफी-काफी देर तक घर से बाहर रहने लगा...उसके दोस्त उससे अपना काम निकलवाते फिर पेट भर नमन की तारीफ कर देते..नमन फुला नहीं समाता और घर आकर जब अपने माँ -पिता से यह बताता है तो उसके पिता उसे समझाते है की , तुम अपनी बराबरी,, अपने से ज्यादा पढ़े -लिखे के साथ करो तब तुम्हें पता चलेगा की,तुम्हें अभी बहुत -कुछ सीखना है.. पर नमन कहाँ माननेवाला था उसे लगता की उसके माता-पिता उसे नीचा दिखाना चाहते है..इसलिए ऐसा बोल रहे है..
         कुछ दिन के बाद नमन का रिजल्ट आया जिसमे वह दो विषयों में फेल हो गया ..तभी भी उसके पापा ने उसे प्यार से समझाया पर कोई फायदा ना हुआ.. उलट वह अपने दोस्तों के साथ और समय बिताने लगा 
        उसमें से कुछ सिगरेट और दारू पीनेवाले लोग भी थे जो घर से लड़ - झगड़ कर पैसे ले आते...नमन दारू और सिगरेट तो नहीं पिता था पर अपने उन दोस्तों के साथ बैठा रहता था...उसके दोस्तों को उसकी ये बात अच्छी नहीं लगती थी...दोस्तों ने उसे फ़साने की साजिश की ..वे मजाक के बहाने उसपर कभी दारू झिड़क देते तो कभी सिगरेट के धुवें उड़ा देते..
   जब वह घर जाता तो उसके कपड़ों से दारू और सिगरेट की बदबू आती...माता - पिता जब सवाल पूछते तो नमन कहता मैं तो सिर्फ वहां खड़ा था ...नमन की बात तो सही थी... पर बेटे के कपड़ो से जो बदबू आ रही है और उसके बदलते रवैय्ये के कारण वे उसपर विश्वास भी नहीं कर पा रहे थे..." वो कहते है न अगर आप किसी गलत इन्सान के साथ खड़े भी है तो भी आप भी शक के घेरे में आ जायेंगे."..यही स्थिति यहाँ भी थी...माता - पिता को लगता है की उनका बेटा बिगड़ गया है...और बेटे को लगता है की उसके माता-पिता उसपर शक करते हैं....

सिख...
१) किसी के बहकावे में न आये...माता-पिता से बड़ा हितैषी बच्चों के लिए और कोई नहीं होता...
२) प्रसंशा अपनी जगह ठीक है पर उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा जरुरी है...
३) आप भले ही बहुत अच्छे हो पर यदि आप गलत व्यक्ति के साथ खड़े हैं .. तो आप भी शक के घेरे में आ सकते हो...


कम पढ़े लिखे से कोई गलत मतलब नहीं है मेरा..हर बात के कई पहलू हो सकते है..जिनमे एक यह भी है....

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