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शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

Shaniwar Ki Sham शनिवार की शाम



शनिवार की शाम 
जब फुर्सत के पल होते हैं..
और सुकून की सांसे लेते हम..
और हमारे साथ विस्तृत आसमान ...
चमचमाती चाँदनी , ठंडा चाँद...
महकती हवा ,
और गरमागरम चाय की प्याली
एक तुम्हारे हाँथ में,, एक मेरे हाँथ में
हर घूँट के बाद एक अरमान , एक ख्वाहिश
एक सपने , एक वादे
एक तुम्हारी होती उसपर मेरी हाँ
एक मेरी होती उसपर तुम्हारी हाँ..
हर हाँ पर एक मीठी सी मुस्कान..
पर शायद तूम्हारी तरफ से मिठास
कुछ ज्यादा ही हो गयी थी..
इसलिए तुम्हारे विदेश जाने की
बात पर भी मै हाँ कह गयी थी ....
अब देखो ..
वही शनिवार की शाम है..
विस्तृत आसमान 
चमचमाती चाँदनी , ठंडा चाँद...
महकती हवा ,
और गरमागरम चाय की प्याली
बस तुम नहीं..
तुम्हारी जगह तुम्हारी यादों ने ले ली है..
वो कहते हैं न,, अति हर चीज की बुरी होती है..
और अब देखो ,,
तुम्हारी मीठी चाय से
हो गयी न मुझे तन्हाई की डायबिटीज...
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