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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

Chhanikayen क्षणिकाएं



गुलाब पाने की चाहत में 
आँख बंद कर चल दिए 
और न जाने कितने काँटों से चोट खायी ..
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जब जाना ही था 
तो क्यों आए थे मेरी जिंदगी में 
माना की तनहा थे हम पर 
खुश थे , क्यों जगाये थे वो प्यार के अहसास,
क्यों दिलाया वो अहसास की मै भी करती हूँ तुमसे प्यार ..
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नजदीकिया इतनी न बढाओ 
की हर बात अब शिकायत सी लगे ..
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कभी सोचा ना था की यू  खो जाएगी जिंदगी 
किसी के इंतजार में , कभी सोचा न था की यू
 बदल जाएगी जिंदगी किसी के प्यार में ...
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तुमसे मिलने के बाद ये अहसास आया 
कितने अकेले थे हम ये ख्याल आया 
अब जिंदगी तेरे साये में यू ही बीत जाये
 बरसो की तन्हाई का अब अंत हो जाए ....
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जिंदगी में उसकी तलाश आखिर कब तक 
जो नहीं मिल सकता उसका इंतजार आखिर कब तक ....
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चली जाती  हूँ  ये शिकायत है उन्हें 
पर ये नहीं सोचते की ,आ भी तो जाती हूँ 
सिर्फ एक बार बुलाने पर ,तो शिकायत किस बात की...
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